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Beekeeping (hindi) (pb)


Edition:
1
Volume:
0
Publishing Year:
2013
Publisher:
M/s AGROBIOS (INDIA)
Author/s:
Dr. Singh Dharm
Language:
Hindi

Availability:

In stock

Paper Back
ISBN:   9788177545197
Publishing Year:  

Rs 200.00


मधुमक्खीपालन एक लघु व्यवसाय है जिसे कम पूंजी तथा कम मेहनत से आरम्भ किया जा सकता है। पहले कुछ पेशेवर लोग ही शहद निकालने का धंधा करते थे किन्तु अब शहद पैदा करने का जो तरीका नये रूप में सामने आया है उससे यह लगने लगा है कि यह धंधा लघु उद्योग के रूप में घर-घर किया जा सकता है। मधुमक्खीपालन पूरी तरह घरेलू उद्योग है जिससे प्रत्यक्षरूप में शहद, मोम, पराग, रौयल जैली, प्रोपोलिस तथा मौनविष जैसे बहुमूल्य उत्पाद तो प्राप्त होते ही हैं साथ ही अप्रत्यक्ष रूप में परपरागित फसलों  की पैदावार में 50 से 100 प्रतिशत तक वृद्धि होती है। वैज्ञानिक अध्ययनों से साबित हुआ है कि मधुमक्खीपालन से शहद द्वारा प्राप्त आय के रूप में यदि एक रूपये का लाभ होता है तो परपरागित फसलों की पैदावार बढ़ा कर 14 गुना लाभ उन किसानों को मिलता हैं जो उस इलाके में खेती या बागवानी करते हैं। मधुमक्खीपालन सरल एवं कम मेहनत का व्यवसाय होने के कारण ग्रामीण अनपढ़ महिलाऐं भी आर्थिक समृद्धि के लिए इसे अपना सकती हैं। भूमिहीन व्यक्ति भी इस व्यवसाय को अपना सकते हैं क्योंकि इसके लिए जमीन की आवश्यकता नहीं होती। मधुमक्खीपालन के लिए आवश्यक मौनगृह पेटिका, दस्ताने, धूंआधार, शहद निष्कासन यंत्र, टोपी आदि उपकरण बनाने का धंधा अपना कर ग्रामीण युवक रोजगार पा सकते हैं। मौनगृह के उत्पादों का शुद्धिकरण तथा बोतलों में पैकिंग कर बिक्री से भी रोजगार के अच्छे अवसर उपलब्ध होते हैं।अनेक वैज्ञानिकों का मत है कि मधुमक्खी का प्रादुर्भाव भारत तथा दक्षिणपूर्व एशिया में हुआ था। मधुमक्खीयों का जन्म स्थल माने जाने के बावजूद भारत में मधुमक्खीपालन का स्तर पाश्चात्य देशों  की तुलना में बहुत नीचा है। भारत में आज भी मधुमक्खीपालन के लिए प्राचीन तरीके काम में लाये जाते हैं। वैज्ञानिक तरीकों से मधुमक्खीपालने का कार्य बहुत ही कम लोग जानते हैं। मधुमक्खी मण्डलों को मधुमक्खी पेटिका में रखने की जानकारी भी केवल कुछ लोगों को ही है। भारतीय लोगों ने आज इस धंधे को न तो अपनी रोजी-रोटी का साधन बनाने के बारे में सोचा है और न इस उद्योग को व्यापारिक  रूप में अपनाया है। इसका मुख्य कारण मधुमक्खीयों से कम समय में कम लागत व मेहनत से होने वाली आकर्षक आमदनी के बारे मेें लोगों को बहुत ही कम जानकारी है। मधुमक्खीयों के व्यवहार, खानपान एवं उस पर विभिन्न क्षेत्रों की अलग-अलग जलवायु के प्रभावों का ज्ञान भी अधिकांश लोगों को नहीं है। शहद का उत्पादन बढ़ाने के लिए मधुमक्खी पालकों को वैज्ञानिक आधार आज भी पूरी तरह उपलब्ध नहीं हैं। यही वजह है कि विश्व के प्रमुख शहद उत्पादक देशों की तुलना में भारत में शहद की पैदावार बहुत ही कम है।अधिकांश मधुमक्खी पालक यह मानते हैं कि मधुमक्खीपालन के लिए यूरोपीयन प्रजाति की मौन ही उचित है किंतु हम यहाँ स्पष्ट करना चाहते हैं कि भारतीय मधुमक्खी की शहद उत्पादन क्षमता भी कम नहीं है। भारत में शहद की कम पैदावार में भारतीय प्रजाति की मधुमक्खीयों का दोष नहीं है। दोष केवल उन कृषि वैज्ञानिकों एवं व्यक्तियों का है जो मधुमक्खीपालन के प्रति आज भी उदासीनता की सोच रखते हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि भारतीय  मधुमक्खीयों पर सुसंगठित एवं सुचारू रूप से अनुसंधान किया जाय, इसकी उन्नत नस्लें विकसित की जायें और मधुमक्खीपालन में उन तरीकों का इस्तेमाल हो जिनसे शहद एवं अन्य मधुमक्खी उत्पादों की पैदावार बढ़ सके।

Dr. Singh Dharm

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Book Details

Book Title:
Beekeeping (hindi) (pb)
Book Type:
TEXTBOOK
No Of Pages:
128
Color Pages :
0
Color Pages :
0
Book Size:
DEMY (5.5X8.5)
Weight:
100 Gms
Copyright Holder:

Imprint:
M/s AGROBIOS (INDIA)
Readership:
ENTREPRENEURS | FIELD WORKERS | PG STUDENTS | UG STUDENTS |

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