Beekeeping (hindi) (pb)
मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ीपालन à¤à¤• लघॠवà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ है जिसे कम पूंजी तथा कम मेहनत से आरमà¥à¤ किया जा सकता है। पहले कà¥à¤› पेशेवर लोग ही शहद निकालने का धंधा करते थे किनà¥à¤¤à¥ अब शहद पैदा करने का जो तरीका नये रूप में सामने आया है उससे यह लगने लगा है कि यह धंधा लघॠउदà¥à¤¯à¥‹à¤— के रूप में घर-घर किया जा सकता है। मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ीपालन पूरी तरह घरेलू उदà¥à¤¯à¥‹à¤— है जिससे पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤·à¤°à¥‚प में शहद, मोम, पराग, रौयल जैली, पà¥à¤°à¥‹à¤ªà¥‹à¤²à¤¿à¤¸ तथा मौनविष जैसे बहà¥à¤®à¥‚लà¥à¤¯ उतà¥à¤ªà¤¾à¤¦ तो पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होते ही हैं साथ ही अपà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· रूप में परपरागित फसलों की पैदावार में 50 से 100 पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ तक वृदà¥à¤§à¤¿ होती है। वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨à¥‹à¤‚ से साबित हà¥à¤† है कि मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ीपालन से शहद दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ आय के रूप में यदि à¤à¤• रूपये का लाठहोता है तो परपरागित फसलों की पैदावार बढ़ा कर 14 गà¥à¤¨à¤¾ लाठउन किसानों को मिलता हैं जो उस इलाके में खेती या बागवानी करते हैं। मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ीपालन सरल à¤à¤µà¤‚ कम मेहनत का वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ होने के कारण गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ अनपढ़ महिलाà¤à¤‚ à¤à¥€ आरà¥à¤¥à¤¿à¤• समृदà¥à¤§à¤¿ के लिठइसे अपना सकती हैं। à¤à¥‚मिहीन वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ à¤à¥€ इस वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ को अपना सकते हैं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इसके लिठजमीन की आवशà¥à¤¯à¤•ता नहीं होती। मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ीपालन के लिठआवशà¥à¤¯à¤• मौनगृह पेटिका, दसà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥‡, धूंआधार, शहद निषà¥à¤•ासन यंतà¥à¤°, टोपी आदि उपकरण बनाने का धंधा अपना कर गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ यà¥à¤µà¤• रोजगार पा सकते हैं। मौनगृह के उतà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¥‹à¤‚ का शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤•रण तथा बोतलों में पैकिंग कर बिकà¥à¤°à¥€ से à¤à¥€ रोजगार के अचà¥à¤›à¥‡ अवसर उपलबà¥à¤§ होते हैं।अनेक वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•ों का मत है कि मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी का पà¥à¤°à¤¾à¤¦à¥à¤°à¥à¤à¤¾à¤µ à¤à¤¾à¤°à¤¤ तथा दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤ªà¥‚रà¥à¤µ à¤à¤¶à¤¿à¤¯à¤¾ में हà¥à¤† था। मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ीयों का जनà¥à¤® सà¥à¤¥à¤² माने जाने के बावजूद à¤à¤¾à¤°à¤¤ में मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ीपालन का सà¥à¤¤à¤° पाशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥à¤¯ देशों की तà¥à¤²à¤¨à¤¾ में बहà¥à¤¤ नीचा है। à¤à¤¾à¤°à¤¤ में आज à¤à¥€ मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ीपालन के लिठपà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ तरीके काम में लाये जाते हैं। वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• तरीकों से मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ीपालने का कारà¥à¤¯ बहà¥à¤¤ ही कम लोग जानते हैं। मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी मणà¥à¤¡à¤²à¥‹à¤‚ को मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी पेटिका में रखने की जानकारी à¤à¥€ केवल कà¥à¤› लोगों को ही है। à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ लोगों ने आज इस धंधे को न तो अपनी रोजी-रोटी का साधन बनाने के बारे में सोचा है और न इस उदà¥à¤¯à¥‹à¤— को वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°à¤¿à¤• रूप में अपनाया है। इसका मà¥à¤–à¥à¤¯ कारण मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ीयों से कम समय में कम लागत व मेहनत से होने वाली आकरà¥à¤·à¤• आमदनी के बारे मेें लोगों को बहà¥à¤¤ ही कम जानकारी है। मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ीयों के वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤°, खानपान à¤à¤µà¤‚ उस पर विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ की अलग-अलग जलवायॠके पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ अधिकांश लोगों को नहीं है। शहद का उतà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ बढ़ाने के लिठमधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी पालकों को वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• आधार आज à¤à¥€ पूरी तरह उपलबà¥à¤§ नहीं हैं। यही वजह है कि विशà¥à¤µ के पà¥à¤°à¤®à¥à¤– शहद उतà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤• देशों की तà¥à¤²à¤¨à¤¾ में à¤à¤¾à¤°à¤¤ में शहद की पैदावार बहà¥à¤¤ ही कम है।अधिकांश मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी पालक यह मानते हैं कि मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ीपालन के लिठयूरोपीयन पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿ की मौन ही उचित है किंतॠहम यहाठसà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ करना चाहते हैं कि à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी की शहद उतà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ à¤à¥€ कम नहीं है। à¤à¤¾à¤°à¤¤ में शहद की कम पैदावार में à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿ की मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ीयों का दोष नहीं है। दोष केवल उन कृषि वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•ों à¤à¤µà¤‚ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का है जो मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ीपालन के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ आज à¤à¥€ उदासीनता की सोच रखते हैं। आज आवशà¥à¤¯à¤•ता इस बात की है कि à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯Â मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ीयों पर सà¥à¤¸à¤‚गठित à¤à¤µà¤‚ सà¥à¤šà¤¾à¤°à¥‚ रूप से अनà¥à¤¸à¤‚धान किया जाय, इसकी उनà¥à¤¨à¤¤ नसà¥à¤²à¥‡à¤‚ विकसित की जायें और मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ीपालन में उन तरीकों का इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² हो जिनसे शहद à¤à¤µà¤‚ अनà¥à¤¯ मधà¥à¤®à¤•à¥à¤–ी उतà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¥‹à¤‚ की पैदावार बढ़ सके।
Dr. Singh Dharm
555Book Details
Book Title:
Beekeeping (hindi) (pb)
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Book Type:
TEXTBOOK
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No Of Pages:
128
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Color Pages :
0
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Book Size:
DEMY (5.5X8.5)
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Weight:
100 Gms
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Copyright Holder:
Imprint:
M/s AGROBIOS (INDIA)
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Readership:
ENTREPRENEURS | FIELD WORKERS | PG STUDENTS | UG STUDENTS |
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